मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Wednesday, February 13, 2008

वात्सल्यमयी माँ

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माँ के प्यार का न है कोई जवाब !
न ही उसकी कोई कीमत और न ही कोई हिसाब !!
माँ की ही वह गोद है जहाँ मानवता पले !
अगर जन्नत है कहीं तो उसके आँचल के तले !!


जिस तरह माता अपने बेटे के लिये हरेक चीज कुर्बान कर देती है, उसी प्रकार बेटे को चाहिये कि
उसके लिये सब कुछ अर्पण कर दें, लेकिन अफसोस कि सांसारिक बाद्शाहों और अमीरों में इसकी नबहूत कम मिसालें मिलती है1 शाहजहाँ बादशाह की तरह और लोगों ने अपने लिये, अपनी औलाद या
चहेती पत्नी के लिये तो बहुत सी यादगारें कायम की लेकिन खास अपनी माता के लिये यादगार कायम करने वाले बहुत ही कम है!


व्रहद धर्म पुराण में महर्षि वेदव्यासजी माता की महिमा इस प्रकार बयान की है -


(1) पुत्र के लिए माता का स्थान पिता से बढकर होता है क्योंकि वह उसे गर्भ म्रें धारण करती है और माता के द्वारा ही उसका पालन-पोषण हुआ है. तीनो लोकों में माता के समान दूसरा कोई नहीं है !
(2) गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं , विष्णु के समान कोई पूजनीय नहीं और माता के समान कोई गुरु नहीं!


इसलिये


भूलकर भी कभी माँ को न सताओ !


माँ की मुस्कान पर अपना सर्वस्व लुटाओ !!


प्रात: उठकर माँ को सदा शीश झुकाओ !


निश्चय ही हर कार्य में सफलता पाओ !!


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