जब से गई है माँ मेरी रोया नहीं कवि कुलवंत सिंह
जब से गई है माँ मेरी रोया नहींबोझिल हैं पलकें फिर भी मैं सोया नहींऐसा नहीं आँखे मेरी नम हुई न होंआँचल नहीं था पास फिर रोया नहींसाया उठा अपनों का मेरे सर से जबसपनों की दुनिया में कभी खोया नहींचाहत है दुनिया में सभी कुछ पाने कीपायेगा तूँ वह कैसे जो बोया नहींइंसा है रखता साफ तन हर दिन नहाबीतें हैं बरसों मन कभी धोया नहीं
मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!
Friday, February 22, 2008
जब से गई है माँ मेरी रोया नहीं
-------------------- हे माँ ! तू नहीं तो ये जहां कहाँ ? ----------
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