मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Sunday, March 30, 2008

माँ-बाप की आँखों में आंसू...

माँ-बाप की आँखों में दो बार ही आंसू आते है !
एक तो लडकी घर छोडे तब और दूसरा लडका मुँह
मोडे तब, पत्नि पसंद से मिल सकती है !
मगर माँ तो पुण्य से मिलती है इसलिये पसंद
से मिलने वाली के लिये पूण्य से मिलने वाली को
मत ठुकरा देना ! जब तू छोटा था तो माँ की शय्या गीली रखता
था, अब बडा हुआ तो माँ की आंख गीली रखता है! तू कैसा
बेटा है ? तूने जब धरती पर पहला सांस लिया, तब
माँ-बाप तेरे पास थे अब तेरा फर्ज है कि माता-पिता
जब अंतिम सांस लें, तब तू उनके पास रहे ...
------ मुनि श्री तरुणसागर जी

माँ को अपने बेटे का इंतजार..

माँ को अपने बेटे का ईंतजार ...
आप से बाहर भले ही डाक्टर, वकील, व्यापारी और बुद्धिजीवी
बने रहें लेकिन शाम को जब घर पहुंचे तो अपने पेशे को
बाहर छोड्कर हे घर में प्रवेश करें ! कारण कि
वहाँ तुम्हारे दिमाग कि नहीं दिल की जरुरत है. घर पर कोई मरीज, मुवक्किल, ग्राहक
थोडी न तुम्हारा ईंतजार कर रहा है, जो तुम डाक्टर, वकील या
व्यवसायी बनकर घर लौट रहे हो!
वहाँ तो एक माँ को अपने बेटे का, पत्नी को अपने पति का
और बच्चों को अपने पिता का इंतजार है !
शाम को अपने घर पिता, पति और पुत्र की हैसियत से ही लौटना चाहिये !
--- आदरनीय मुनि श्री तरुणसागरजी

प्रशांतभाई

अपने घर परिवार में माता-पिता के साथ भले ही कभी
जुबान चल भी जाये पर उनके साथ बोल-चाल बंद मत करना
क्योंकि बोलचाल बंद करने से समझोते या प्यार की सारे राहे स्वत:
ही बंद हो जाती है1 छोटे बच्चों की तरह बनकर रहो, वो लडाई जगडे के दूसरे क्षण
वापस एक हो जाते है.
गुस्सा आना स्वाभाविक है मगर उसके बाद अपने माता-पिता से दुस्मनी बना लेना
बिल्कुल समझदारी नहीं होती !
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मुनि तरुण सागर जी

माँ-बाप होने के नाते अपने बच्चों को
खूब पढाना-लिखाना और पढा-लिखाकर खूब
लायक बनाना ! मगर इतना लायक भी मत बना देना कि वह
कल तुम्हे ही ' नालायक' समझने लगे.
अगर तुमने आज यह भूल की तो कल बुढापे में तुम्हें
बहुत रोना पछताना पडेगा! ये बात मैं इसलिये कय
रहा हूं क्योंकि कुछ लोग यह भूल जिंदगी मैं कर चुके
है और वे आज रो रहे है,
अब पछताने से क्या होत है जब चिडियाँ चुग गई खेत !
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Thursday, March 20, 2008

Dr. Srimati Tara Singh

सुख का उदगम माँ की गोद
है संतान की इच्छाओं का ,स्तर -स्तर हर्षित
रहेमाता-पिता सर्वस्व लुटाने बरबस रहते तैयार
सुरपुर का सब मीठा फल रखते उसके लिए संभाल धिक्कार है
ऐसे संतान को , बावजूद इसकेअपने बूढे माता -पिता से ,
विमुख होकर जीतारखता नहीं उनका खयाल,
तब भी पिता चाहतामेरे पुत्र का बाल नहाते वक्त भी न
टूटेन ही पाँवों में पड़े कंकड़ी का दागव्यर्थ है उसकी साधना ,
पूजा -पाठ , सन्यासकर में धर्मदीप न हो ,
तो सब है बकवास चित्त प्रभु के चरणों में,
चाहे जितना लगा लेजितना कर ले
दान - पुण्य , तप , उपवास नहीं मिलने वाला सुख - शांति का आवास
क्योंकि सुख का उदगम माँ की गोद
हैपिता का प्यार है और है सेवा-धर्म
प्रयासइसलिए दायित्व ग्रहण कर एक अच्छे संतान काक्या है माता- पिता की इच्छा , जान चिंता कर किसी भी बुरे कर्म के लिए चरण उठाने से
पहल्रेसोचो कहीं तुम्हारी पद- ध्वनियाँ , तुम्हारी आने- वाली पीढियों के कानों तक तो नहीं पहुँच रहीक्योंकि जैसा संदेश , भूमि से अम्बर को जायगावहाँ से आने वाला , वैसा ही तो आयगाहो कोई दुनिया में ऐसा कोई माता-पिता दिखाजो हाथ जोड़कर , देव - देवताओं से कहेहे देव ! हमें जीने दो , मरे हमारे बच्चे सगहेवे तो चाहते , बरसे रंग रिमझिम कर गगन सेभीगे मेरे संतान का स्वप्न निकलकर मन से

बेटी होने का सुख या दुख - अनु सपन की एक गज़ल



मेरे घर में चहकती रही बेटीयाँ, शहर भर को खटकती रही

घर में चहकती रही बेटीयाँ, शहर भर को खटकती रही बेटीयाँ

ओढ कर स्वपन सारा शहर सो गया,

ओढ कर स्वपन सारा शहर सो गया,

राह पापा की तकती रही बेटीयाँ.

छोड माँ-बाप-बेटा-बहू चल दिये,

छोड माँ-बाप-बेटा-बहू चल दिये,

खुशबू बन के महकती रही बेटीयाँ.
मेरे घर में चहकती रही बेटीयाँ, शहर भर को खटकती रही बेटीयाँ
अब की तनख्वहा पे ये चीज़ लाना हमें,

अब की तनख्वहा पे ये चीज़ लाना हमें,

कहते-कहते झिझकती रही बेटीयाँ.
मेरे घर में चहकती रही बेटीयाँ, शहर भर को खटकती रही बेतीयाँ

इस जमाने ने शर्मो-हया बेच दी,

इस जमाने ने शर्मो-हया बेच दी,

राह चलते सहमती रही बेटीयाँ.
मेरे घर में चहकती रही बेटीयाँ, शहर भर को खटकती रही बेटीयाँ

माँ संवेदना है - ओम व्यास जी की कविता




माँ…माँ संवेदना है, भावना है अहसास
हैमाँ…माँ-माँ संवेदना है, भावना है अहसास
हैमाँ…माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है,
माँ…माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पलना है,
माँ…माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है,
माँ…माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है,
माँ…माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है,
माँ…माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है,
माँ…माँ गालों पर पप्पी है, ममता की धारा है,
माँ…माँ झुलसते दिलों में कोयल की बोली है,
माँ…माँ मेहँदी है, कुमकुम है, सिंदूर है, रोली है,
माँ…माँ कलम है, दवात है, स्याही है,
माँ…माँ परामत्मा की स्वयँ एक गवाही है,
माँ…माँ त्याग है, तपस्या है, सेवा है,
माँ…माँ फूँक से ठँडा किया हुआ कलेवा है,
माँ…माँ अनुष्ठान है, जीवन का हवन है,
माँ…माँ जिंदगी के मोहल्ले में आत्मा का भवन है,
माँ चूडी वाले हाथों के मजबूत कधों का नाम है,
माँ…माँ काशी है, काबा है और चारों धाम है,
माँ…माँ चिंता है, याद है, हिचकी है,
माँ…माँ बच्चे की चोट पर सिसकी है,
माँ…माँ चुल्हा-धुंआ-रोटी और हाथों का छाला है,
माँ…माँ ज़िंदगी की कडवाहट में अमृत का प्याला है,

माँ पृथ्वी है, जगत है, धूरी है,
माँ बिना इस सृष्टी की कलप्ना अधूरी है,
तो माँ की ये कथा अनादि है,ये अध्याय nahinहै ……
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
और माँ का जीवन में कोई पर्याय नहीं है,
तो माँ का महत्व दुनिया में कम हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
और माँ जैसा दुनिया में कुछ हो नहीं सकता,
तो मैं कला की ये पंक्तियाँ माँ के नाम करता हूँ,
और दुनिया की सभी माताओं को प्रणाम करता हूँ.

माँ संवेदना है तो पिता क्या है?


पिता…पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है,
पिता…पिता सृष्टी मे निर्माण की अभिव्यक्ती है,
पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है,
पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है,


पिता…पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है,

पिता…पिता धौंस से chalane वाला प्रेम का प्रशासन है,
पिता…पिता रोटी है, कपडा है, मकान है,
पिता…पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है,


पिता…पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है,
पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है,

पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं,

पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं,
पिता से परिवार में प्रतिपल राग है,
पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है,


पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ती है,
पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिती की भक्ती है,

पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ती है,
पिता…पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ती है,

पिता…पिता एक जीवन को जीवन का दान है,
पिता…पिता दुनिया दिखाने का एहसान है,

पिता…पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है,
पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,


पिता नहीं तो बचपन अनाथ है,तो

पिता से बडा तुम अपना नाम करो,
पिता का अपमान नहीं उनपर अभिमान करो,


क्योंकि माँ-बाप की कमी को कोई बाँट नहीं सकता,

और ईश्वर भी इनके आशिषों को काट नहीं सकता,
विश्व में किसी भी देवता का स्थान दूजा है,
माँ-बाप की सेवा ही सबसे बडी पूजा है,


विश्व में किसी भी तिर्थ की यात्रा व्यर्थ हैं,

यदि बेटे के होते माँ-बाप असमर्थ हैं,


वो खुशनसीब हैं माँ-बाप जिनके साथ होते हैं,

क्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते

हैंक्योंकि माँ-बाप के आशिषों के हाथ हज़ारों हाथ होते

पापा कहीं मुझे मार तो नहीं देंगे?


मम्मी, पापा अभी तक क्यों नहीं आये?

मम्मी, पापा का नाश्ता बन गया क्या?

मम्मी, आप पापा से क्यों झगडती हो?

मम्मी, पापा आज मेरे लिये क्या लाये?

मम्मी, पापा सो गये क्या?

मम्मी, पापा मुझे प्यार तो करते हैं ना?

मम्मी,

मम्मी, एक आखरी सवाल……

पापा कहीं मुझे मार तो नहीं देंगे?

बोलो ना मम्मी…
इतने सारे सवाल करती है,

माँ के पेट से……

अ-जन्मी बेटी.
और माँ केवल अंतिम सवाल का ही उत्तर दे पाती है,

हाँ… शायद हाँ…

Source : Blog- यह भी खूब रही।

अब माँ के दूध का भी होगा कारोबार


अब माँ के दूध का भी होगा कारोबार

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माँ का दूध शिशु के लिए अनमोल होता है
अमरीका की एक कंपनी अब माँ के दूध का कारोबार करने के लिए क़दम बढ़ा रही है जिससे अस्पतालों में उन बच्चों का इलाज किया जा सकेगा जिनकी माताएँ अपने शिशुओं को अपना दूध नहीं पिला सकतीं.
प्रोलैक्टा बायोसाइंसेज़ नाम की यह छोटी सी कंपनी लॉस एंजल्स के बाहरी इलाक़े में स्थित है. यह कंपनी माँ के दूध पर आधारित इलाज को विकसित करने के लिए शोध भी करना चाहती है.
माँ के दूध को शिशु के लिए अमृत समान माना जाता है यानी उसमें खनिज, पाचक तत्व और एंटीबोडीज़ सहित वे सभी तत्व मौजूद होते हैं जो शिशु के जीवन के लिए अनमोल होते हैं.
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनी के इस फ़ैसले से बहुत सी माताओं पर अपना दूध बेचने के लिए दबाव बढ़ेगा.
अभी तक अमरीका और ब्रिटेन में कुछ गिने-चुने ऐसे दूध बैंक हैं जो स्थानीय स्तर पर माँ का दूध इकट्ठा करते हैं और उन बच्चों के लिए आपूर्ति करते हैं जिनका जन्म समय से पहले होता है और उनकी माँ को अपना दूध पिलाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है.
लेकिन प्रोलैक्टा कंपनी की योजना है कि वह माँ के दूध के बैंकों और अस्पतालों से दूध ख़रीदकर उसे पॉश्चॉराइज़ करने के बाद अस्पतालों को वापस बेचेगी.
कंपनी माँ के दूध को उन बच्चों के लिए भी आपूर्ति करने की योजना बना रही है जिन्हें दिल की बीमारियाँ होती हैं, जिनका ऑपरेशन किया जाता है और जिन्हें संक्रमण का ख़तरा होता है.
कंपनी माँ के दूध में मौजूद तत्वों के बारे में शोध भी करना चाहती है ताकि नवजात शिशुओं में आम बीमारियों का इलाज माँ के दूध से किया जा सके.
अलग-अलग राय
प्रोलैक्टा की मुख्य कार्यकारी अधिकारी एलेना मीडो का कहना था, "जहाँ तक मेरी जानकारी है यह दुनिया भर में इस तरह की पहली और एक मात्र सेवा होगी."
अदभुत नुस्ख़ा
माँ का दूध एक अदभुत नुस्ख़ा है. क्यों ना हम ऐसी सुविधा क़ायम करें जहाँ बीमारी से लड़ने वाले इसमें मौजूद तत्वों को सहेजा जा सके.

प्रोलैक्टा कंपनी की प्रमुख
मीडो का कहना था, "माँ का दूध एक अदभुत नुस्ख़ा है. क्यों ना हम ऐसी सुविधा क़ायम करें जहाँ बीमारी से लड़ने वाले इसमें मौजूद तत्वों को सहेजा जा सके."
लेकिन उत्तरी अमरीका में मानव दूध बैंकिंग एसोसिएशन ने माँ के दूध की "ख़रीद-फ़रोख़्त" पर सवाल उठाए हैं.
एसोसिएशन का कहना है कि माँ के दूध के साथ व्यावसायिक पहलू जुड़ने के साथ माताओं पर अपना दूध बेचने के लिए दबाव बढ़ेगा और वे शायद इस बात की अनदेखी करने लगें कि उनके अपने बच्चों को इस दूध की ज़रूरत होती है.
ब्रिटेन के नेशनल चाइल्डबर्थ ट्रस्ट की रोज़ी डोड्स का कहना है कि वह इन चिंताओं को समझती हैं.
लेकिन उन्होंने कहा, "ज़रूरत इस बात की है कि और ज़्यादा माताएँ अपना दूध उपलब्ध कराने के लिए आगे आएँ. इस पूरे मुद्दे को और ज़्यादा अहमियत दिए जाने की ज़रूरत है. मैं सिक्के के दोनों पहलू देख सकती हूँ."
उनका कहना था, "हालाँकि मैं नहीं समझती कि यह योजना ब्रिटेन में कामयाब होगी क्योंकि यह अस्पतालों के लिए बहुत ख़र्चे वाली साबित होगी."
साभार : BBCHindi शनिवार, 06 अगस्त, 2005

बूढे माँ-बाप : कर्ज या फर्ज

बूढे माँ-बाप : कर्ज या फर्ज
उदास चेहरे की झुर्रियों को बरसती आँखे सुना रही है अपने सपने को सच करने ज़िगर का टुकडा शहर गया हैं.जी हाँ,यह त्रासदी हैं उन बूढे माता-पिताओं की जो बडे अरमानों से अपने जिगर के टुकडों को शहरों में पढने के लिये शहर तो भेज देते हैं उनके सपनों को पूरा करने के लिये,लेकिन बाद में यही बेटे पूरी तरह से माता-पिता के द्वारा किये गये बलिदानों को भूल जाते हैं और उनकी कोई खैर खबर नहीं लेते हैं.शहरी चमक-दमक और बंगले और कार के बीच अपने माता-पिता द्वारा दिये गये संस्कारों को भूल जाते हैं.उनके हाल पर उनको छोड देते हैं.भारतीय परिप्रेक्ष्य में ओल्ड एज होम की कल्पना करना आज से कुछ दिन पहले तक संभव नही था.लेकिन बदलती परिस्थितियों में इनकी संख्या में बढोत्तरी अपने सामाजिक स्थिति की बदहाल तस्वीर को हमारे सामने रखती हैं.जिंदगी भर हमारे लिये अपना सर्वस्व न्योछवर करने वाले अभिभावकों को उनके जीवन काल की संध्या में हम आश्रय न दे सके यह कितनी शर्म की बात हैं.एकल परिवार की अवधारणा को शहरी संस्कृति में ज्यादा तवज्जों दी जाती है,जिस कारण बच्चों को दादा-दादी या संयुक्त परिवार के अन्य सदस्यों का प्यार नही मिल पाता हैं.वे रिश्तों को ना जानते हैं ना ही उतनी अहमियत देते हैं.आने वाले समय में वे भी माता-पिता के साथ वही व्यवहार करने से नही चूकते,जो उनके माता-पिता अपने माता-पिता के साथ किये होते हैं.भारत सरकार भी संसद में ऐसा कानून लाने की सोच रही हैं,जिससे बूढे माँ-बाप अपने गुजारे के लिये अपना हक माँग सकते हैं.जब कानून के तहत वसीयत पर बेटे अपना हिस्सा माँग सकते है तो कानूनन ही सही अब बूढे माँ-बाप अपने गुजारे के लिये हक से अपने बेटों से पैसा तो माँग ही सकते हैं.लेकिन ऐसी स्थिति आना कितनी शर्म की बात हैं,जीते-जी कोई माँ-बाप के सामने ऐसी स्थिति आती हैं तो यह तो उनके मरने के समान हैं.बेटों का फर्ज बनता है कि वे अपने बूढे मां-बाप की सेवा तन मन से करे.भारतीय संस्कृति में ऐसी स्थिति का आना निश्चय ही शर्म की बात हैं.अपने सपनों को साकार करने के चक्कर में अपने जडों को भूल जाये,ये कहाँ की होशियारी हैं.हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि हमें भी बूढापे से गुजरना हैं,अगर कल वही स्थिति का सामना करना पडे तो यह भी बडी शर्म की बात होगी.

प्रस्तुतकर्ता : नितेश कुमार गोयनका पर

वात्सल्य (VATSALYA-VSS) के बारे में-

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