सारे रिश्ते जेठ दुपहरी
गर्म हवा आतिश अंगारे
झरना दरिया झील समंदर
भीनी सी पुरवाई अम्मा !
घर के झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधडते देखे
चुपके-चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा!!
- आलोक श्रीवास्तव
भाई-बहनों!सम्पूर्ण मानवता को अस्तित्व प्रदान करने वाली "माँ" की पूजा करने के बजाय आज उसे विभिन्न प्रकार की प्रताडनाओं के दौर से गुजरना पड रहा है, संस्कारों के अभाव में एक "माँ" को अपने ही घर में अपनों के ही द्वारा उसे जलील किया जा रहा है, इसके लिये उक्त संगठन द्वारा सम्पूर्ण देशभर में संस्कार अभियान चलाया जा रहा है, इस ब्लोग में आपके उच्च प्रेरणादायी विचार prashantrishi@gmail.com पर सादर आमंत्रित है. आईये उस परमात्मस्वरुपा माँ की रक्षा, संरक्षण और सेवा करने के लिये कट्टीबद्ध होवें!
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