मै रोया प्रदेश में, भीगा माँ का प्यार !
दुख ने दुख से बात की, बिन चिट्ठी बिन तार !!

Friday, April 11, 2008

ऎ माँ ! तेरी सूरत से अलग ...



ईश्वर को माँ बनाने में लगभग आठ दिनों तक ओवरटाईम करना पड़ा। नौंवे दिन उसके सामने फरिश्ता हाज़िर हुआ और बोला कि "प्रभु, आप इस नाचीज़ को बनाने में इतना समय क्यों बरबाद कर रहे हैं?" हूं....ईश्वर बोला "तुम जिसे नाचीज़ समझ रहे हो उसे बनाना इतना आसान काम नहीं था।" अच्छा...! फरिश्ते ने कहा। ईश्वर ने कहा, इस माँ में मैंने कई नायाब लक्षण डाले हैं। कैसे गुण? फरिश्ते नें तपाक से पूछा। अब देखो, इसे कैसे भी मोड़ा जा सकता है, लेकिन यह फटेगा नहीं। इसमें लगभग दो सौ चलने-फिरने वाले पुर्ज़े लगे हैं, और सभी को बदला भी जा सकता है। यह सिर्फ़ चाय और बचे-खुचे जूठन पर चल सकती है। जरूरत पड़ने पर भूखे पेट भी सो सकती है। इसमें एक गोद भी है, जिसमें एक साथ तीन बच्चे आराम कर सकते हैं। इसके चुंबन में तो अद्भुत ताक़त है, जो घुटने की चोट से लेकर टूटे हुए दिल तक को दुरुस्त कर सकती है। और हाँ, इसके शरीर में छ: जोड़ी हाथ भी हैं।छ: जोड़ी हाथ की बात सुन फरिश्ता चौंका। "छ: जोड़ी हाथ...! अरे नहीं, यह कैसे हो सकता है? ईश्वर ने कहा, " ओह..यह हाथ तो ठीक है, लेकिन दिक्कत यह है कि इसमें अभी तीन जोड़ी आँखें भी फिट करनी बाकी है।" अच्छा...फरिश्ता हैरान होकर बोला। ईश्वर ने सहमति में गरदन हिलाई। "लेकिन, प्रभु तीन जोड़ी आँखें क्यों?" फरिश्ते ने पूछा। "एक जोड़ी आँख अपने बच्चों के दिल में झांकने के लिए।" "दूसरी जोड़ी सिर के पीछे, यह जानने के लिए कि उसका क्या जानना जरूरी है।" "और तीसरी जोड़ी बोलने के लिए।" क्या....बोलने के लिए...! फरिश्ता फिर से चौंका। "हाँ, ज़ुबाँ, ख़ामोश रहकर भी निग़ाहों से सबकुछ बता देने के लिए कि उसे सब बात का इल्म है। "अरे वाह भगवान जी।" "गज़ब की चीज़ बनाई है आपने।" फरिश्ता बोला।फरिश्ता माँ की तारीफ़ सुन-सुन कर थक गया था। बोला, "बस कीजिए भगवान, आप भी थक गए होंगे। बाकी काम कल कर लीजिएगा।" "मैं नहीं रुक सकता, ईश्वर ने कहा।" "यह मेरी बनाई हुई सबसे नायाब चीज़ है।" "यह मेरे दिल के सबसे क़रीब है।" "यह बीमार पड़ने पर अपना इलाज़ भी स्वयं कर लेगी।" "एक मुट्ठी अनाज से ही पूरे परिवार का पेट भर सकती है।" "अपने जवान बेटे को भी रगड़-रगड़ कर नहलाने में इसे कोई शर्म नहीं आएगी।"फरिश्ता माँ के नज़दीक जाकर उसे छूता है। लेकिन ईश्वर, "आपने इसे बहुत नाज़ुक बनाया है।" "यह इतना कुछ कैसे कर लेगी?" नर्म, मुलायम, कोमल....हूं..ईश्वर मुस्कुराए। फिर बोले, "जानते हो फरिश्ते - उपर से भले ही यह तुम्हें कोमल लगे, लेकिन मैने अंदर से इसे बहुत ठोस बनाया है।" "तुम्हें इस बात का तनिक भी एहसास नहीं है कि यह क्या कर सकती है।" "चट्टान की तरह मुश्किलों को मुस्कुराते हुए झेल सकती है।" ईश्वर बोले।इतना ही नहीं, "सोचने के साथ-साथ इसकी तर्क शक्ति भी गज़ब की है।" "साथ ही यह हालात से समझौता भी कर सकती है।" यकायक फरिश्ते की नज़र किसी चीज़ पर ठिठक जाती है। वो माँ के गालों को छूता है। "ओह....! यह क्या ईश्वर,लगता है आपके इस मॉडल से पानी रिस रहा है।" "मैंने तो आपसे पहले ही कहा था न, कि आप इस छोटी सी चीज़ में कुछ ज़्यादा ही फ़ीचर डाल रहें हैं।" "ये तो होना ही था।"फरिश्ते की इस बात पर ईश्वर ने एतराज़ जताई। बोले, "गौर से देखो फरिश्ते, यह पानी नहीं है।" "दरअसल यह आँसू हैं।" लेकिन आँसू किस लिए भगवान?" फरिश्ते ने पूछा। "यह तरीका है, उसकी खुशी को व्यक्त करने का।" "अपने ग़म को छुपाने का।" "साथ ही निराशा, दर्द, तनहाई, दुख और अपने गौरव को जताने के लिए भी ये इन आँसुओं का ही तो सहारा लेगी।"फरिश्ता, ईश्वर के बनाई हुई "माँ" से बहुत प्रभावित हुआ। उसने ईश्वर से कहा, "आप धन्य हो प्रभु।" "आपकी यह कृति सचमुच संपूर्ण है।" "आपने इसे सब कुछ तो दिया है।" "यहाँ तक कि अश्रु भी।" ईश्वर मुस्कुराए और बोले "फरिश्ते तुमने समझने में फिर से ग़लती की है।" "मैंने तो सिर्फ़ एक माँ बनाई थी।" "और इस आँसू को तो माँ ने स्वयं ही बनाया है।"
- राजीव कुमार पटना

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